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सौन्दर्य - 4 / प्रेमघन
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मृगलोचनि मंजु मयंक मुखी,
धनि जोबन रूप जखीरनि तू।
मृदुहासिनी फाँसिनी मोहन को,
कच मेचक जाल जँजीरनी तू॥
धन प्रेम पयोनिधि वासिहि बोरहि,
नेह मैं नाभि गंभीरनी तू।
जगनायकै चेरो बनाय लियो,
अरी वाह री वाह अहीरनी तू॥