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मुखड़ी को रंग कनो! / गढ़वाली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सिर धौंपेली<ref>चुटिया</ref> लटकाई कनी,
काला सर्प की केंचुली जनौ!
सिन्दूर से भरी माँग कनी,
नथूली मा गड़ी नगीना जनी।
सी आँखी सरमीली कनी,
डाँडू मा खिली बुराँसी जनी।
मुखड़ी को रंग कनो?
बाला सूरज को रंग जनो!
ओंठू का बीच दाँतुड़ी कनी,
गठ्यांई<ref>गूंथी</ref> भोत्यों माल जनी!
स्वर मा मिठास कनी?
डाँड्यो वासदी हिलाँस<ref>पक्षी</ref> जनी!

शब्दार्थ
<references/>