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घंटी / विनीता परमार
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ये घंटी भी अजीब है,
जन्म के साथ थालियों की घंटी
उठने के लिये अलार्म की घंटी
दरवाजे पर दस्तक की घंटी
फोन की घंटी
स्कूल की घंटी
छुट्टी की घंटी
मंदिर की घंटी
शवयात्रा की घंटी
सबकी आवाज़ तो एक है
फिर एक संगीत तो दूसरा शोर
एक के बजते ही लब और डब झंकृत हो जाता है
दूसरी नसों में रक्त संचार रोक देती है
और मेंरा मन कभी इन घंटियों की आवाज़ को चुभन समझता है
कभी ऐसी घंटी बजाने की
कोशिश करता है
जिससे ओम,आमेन और आमीन निकल जाये।