भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छपनिया काल रे छपनिया काल / राजस्थानी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:19, 9 सितम्बर 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ओ म्हारो छप्पन्हियो काल्ड
फेरो मत अज भोल्डी दुनियाँ में.

बाजरे री रोटी गंवार की फल्डी
मिल जाये तो वह ही भली

म्हारो छप्पन्हियो काल्ड
फेरो मत अज भोल्डी दुनियाँ में.