भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अर्थ है मूल भली तुक डार / दीन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:49, 16 सितम्बर 2016 का अवतरण
अर्थ है मूल भली तुक डार सुखच्छर पत्र को पेखिकै जीजै।
छन्द है फूल नवोरस हैँ फल दान के वारि सोँ सीँचिबो कीजै।
दीन कहै योँ प्रवीनन सोँ कवि की कविता रसराखि के पीजै।
कीरति के बिरवा कवि हैँ इनको कबहूँ कुम्हिलान न दीजै।
दीन का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।