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गणेश चतुर्थी / नीता पोरवाल
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तो आज ले आये मुझे
तुम अपने शीश पर धर
धन्य हुआ मैं!
पर क्या करूँगा
इस रेशमी पीत पटके का
जब वस्त्र विहीन हैं बच्चे
जब हर ओर तार-तार हो रही चूनर
कैसे स्वीकारूँ मोदक
कैसे स्वीकारूँ मेवा मिष्ठान
जब कचरे की ढेरी में
ढूँढ रहे निवाला मेरे नौनिहाल
आखिर कैसे स्वीकारूँ
तन-मन-धन से की गयी
हित-अहित का भेद करना भूल गयीं
तुम्हारी प्रार्थनाएँ
नही सुहाती मुझे
तुम्हारे द्वारा की गयी शंख ध्वनि
हर ओर सुनाई देते करुण क्रंदन से
पहले ही घायल हैं ये कर्ण-विवर
ओह मेरे बच्चे
तुम्हें याद रहती है सिर्फ
मेरी शानदार आव-भगत
और मैं चाहकर भी नही भूल पाता
विसर्जन के पश्चात
कूड़े कचरे से अटी नदियाँ
घाटों पर औंधे पड़े मेरे अपने अवशेष