भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पशोपश में शैतान / नीता पोरवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:25, 22 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीता पोरवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परेशान है इन दिनों
उलटे पैरों वाला शैतान
चबाता रहता है मायूसी से
नींद में भी अपना निचला होंठ
क्योंकि नहीं खौफ रहा उसका अब धरती पर कोई!

दे दी है पटखनी
कुछ सीधे पैरों वाले इंसानों ने
इस आखिरी मुकाबले में भी उसे

बेबस हो जब-तब
दांतों से चबा उठता है नाखून अपने
उफ़ कि नहीं पहचान सकता
चेहरा अपने उस्ताद का

और आखिर आजिज़ आ
मुक़र्रर कर ली है सज़ा
उसने खुद अपने लिए

कुछ सफेदपोशो के दरबार में अब
हर सुबह ओ शाम
सिर झुकाकर ठोंकता है सलाम