भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आह्वाहन / नीता पोरवाल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:39, 22 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीता पोरवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रिये!
ढूँढो
खुद को
जैसे झुंड में
ढूँढ लेती है गाय बछड़े को
पुकारो
खुद को
जैसे पुकारती है पत्तियाँ
मेघों को
जगाओ
खुद को
जैसे नरम पंजों से
जगाते हैं पंछी पेड़ों को
चाहती हूँ मैं
तुम हांके जाओ
सिर्फ़
अपनी ही छड़ी से!!