भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सत्य ही जब कहानी लगे / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:35, 26 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी }} [[Cate...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सत्य ही जब कहानी लगे

तब तो गूँगा भी ज्ञानी लगे


आज के लोक—व्यवहार में

कुछ अधिक सावधानी लगे


काले पैसे को दिल खोल कर

देने वाला ही ‘दानी’ लगे


उस जगह नाग भी आएँगे

जिस जगह रातरानी लगे


कुछ तो संयम से उपयोग कर

तन की चादर पुरानी लगे


प्यास बुझती नही ओस से

प्यास को सिर्फ पानी लगे


राजनैतिक हुई इसलिए

व्यर्थ संतों की बानी लगे