भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दकियानूस / गोपाल ठकुर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:46, 1 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपाल ठकुर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatSin...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मां राहगीरु रही बि
लॻे थो
उते जो उते बीठो आहियां
न मूं समुझो तोखे
न पाण खे
सदियूं पुराणी हीअ सक़ाफ़त
इनसानी नफ़त खे घटाइण में
असमर्थु रही।