भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डूबते ही परी—कथाओं में / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:24, 26 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी }} [[Cate...)
डूबते ही परी— कथाओं में
हम भी उड़ने लगे हवाओं में
अपने तन— मन को बेच देने की
होड़ है, इन दिनों, कलाओं में
आज भी द्रौपदी का चीर —हरण
हो रहा है भरी सभाओं में
जो गुफा में भटक गए थे कहीं
फिर न झाँके कभी गुफाओं में
ढाई आखर के अर्थ मत ढूँढो
चार आखर की कामनाओं में
सिर्फ रोमांच के मजे के लिए
लोग फँसते हैं वर्जनाओं में
मंत्र जैसा प्रभाव होता है
दिल से निकली हुई दुआओं में