भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मीठी—मीठी आग से परिचित हुए / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:25, 26 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी }} [[Cate...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मीठी—मीठी आग से परिचित हुए

हम दहन की राग से परिचित हुए


तन से कुछ ज्यादा ही भीगा मन का छोर

तन से मन तक फाग से परिचित हुए


उम्र भर, यायावरी के बाद भी

कितने कम भू—भाग से परिचित हुए


लोग डँस लेते हैं अवसर देखकर

जो स्वयं के नाग से परिचित हए !


भोर होते ही किया चिड़ियों ने शोर

दिन की भागम—भाग से परिचित हुए


हमने गाँधी की तरह पढ़ा जीवन—चरित्र

इस तरह भी त्याग से परिचित हुए


घर के अंदर बैठकर वन में रहे

मानसिक बैराग से परिचित हुए