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गुल जहिड़ी चुपि कोमाइण लॻी आ / एम. कमल

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गुल जहिड़ी चुपि कोमाइण लॻी आ।
आवाज जी उस खाइण लॻी आ॥

अफ़वाह जे आईने में हर शिकिल।
सुस-पुस सां दिल दहिकाइण लॻी आ॥

ॾहकाव जी अॼु दुनिया दिलियुनि में।
हर ख़ौफ़ खे वरसाइण लॻी आ॥

बद-शिकिल चविणियुनि खे वक्त जी माउ।
बेशरम थी जनमाइण लॻी आ॥

तहज़ीब ऐं तमद्दुन जी कहाणी।
किरदार सभु बदिलाइण लॻी आ॥

कंहिं फूक ते उभिरी परमती लहर।
साहिल खे ॼणि ॻिरकाइण लगी आ॥

ऊंदहि जे सूरज जी रोशनाई।
हर नूर खे ललचाइण लॻी आ॥

सोनहिरी पोती लाहे फ़जा, अॼु।
रत-रंगु चोली पाइण लॻी आ॥