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हर डोह जो पूरो जवाबु घुरन्दो / एम. कमल
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हर डोह जो पूरो जवाबु घुरन्दो।
कोई त तो खां भी हिसाबु घुरन्दो॥
हर नस्ल नईं और ख़वाब ॾिसन्दी।
हर फ़िक्रु नओं इंक़िलाबु घुरन्दो॥
हर युग खे नईं राह सोचु घुरिजे।
हर दौरु नओं को किताबु घुरन्दो॥
हर सुबह नओं सिजु, नयूं अदाऊं।
हर वक्तु नओं आब ताबु घुरन्दो॥
इतिहासु कमल पंहिंजे वक्त ते ई।
हर रत जे फुड़े जो हिसाबु घुरन्दो॥