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राज़ केॾा न उघाड़े वेई / एम. कमल
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राज़ केॾा न उघाड़े वेई।
माठि सभु मर्म लताड़े वेई॥
मुंहिंज ख़्वाबनि जो वसाए घरु, हूअ।
निन्ड जो शहरु उजाड़े वेई॥
ज़िंदगी शान्त ऐं सुख वारो वर्कु।
मुंहिंजे पुस्तक मां ई फाड़े वेई॥
दिल ते पिया दर्द जे भय जा पाछा।
शाम जिअं उस खे उजाड़े वेई॥
हालतुनि जी छिती बुख नेठि कमल।
मुंहिंजे टहकनि खे चॿाडे वेई॥