भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुॾिके ते चित सन्दनि चुरी पिया / एम. कमल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:47, 6 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एम. कमल |अनुवादक= |संग्रह=बाहि जा व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुॾिके ते चित सन्दनि चुरी पिया।
संगे दिल हा, मगर झुरी पिया॥

दिल विसारणु थे जिनि खे चाहियो।
सार थी साह ॾे सुरी पिया॥

मां त दुश्मनु हुउसि हुननि जो।
मुंहिंजे गुल ते हू किअं झुरी पिया!

लूणु यादुनि जो ॿुरिकियुइ छो?
अध-छुटल फट वरी कुरी पिया॥

दोस्त सभु शेर हुआ मिटीअ जा।
वक़्त जो मींहुँ पियो, भुरी पिया॥