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सुॾिके ते चित सन्दनि चुरी पिया / एम. कमल
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सुॾिके ते चित सन्दनि चुरी पिया।
संगे दिल हा, मगर झुरी पिया॥
दिल विसारणु थे जिनि खे चाहियो।
सार थी साह ॾे सुरी पिया॥
मां त दुश्मनु हुउसि हुननि जो।
मुंहिंजे गुल ते हू किअं झुरी पिया!
लूणु यादुनि जो ॿुरिकियुइ छो?
अध-छुटल फट वरी कुरी पिया॥
दोस्त सभु शेर हुआ मिटीअ जा।
वक़्त जो मींहुँ पियो, भुरी पिया॥