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घटिताई / हरि दिलगीर

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ज़िन्दगीअ जे शराब ख़ाने में,
वक्त जी हूर खु़द बणी साक़ी,
साइतुनि मां बणाए सोना जाम,
मूं खे पल पल भरे पियारे थी।

मां लॻातार बस पियां वेठो,
ॼणि जिअण वास्ते पियां थो मां,
ऐं पियण वास्ते जियां थो मां।

एॾो पीतो अथमि, जो अन्तु न आहि,
प्यास पूरी त भी न थी आहे।
प्यास पूरी कॾहिं न थी सघन्दी,
कुझु त आहे कमी किथे न किथे,
या त साक़ीअ में, या शराब में आ,
या त आहे शराब-ख़ाने में,
या त मूं में ई का कमी हूंदी!