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वेसाही / हरि दिलगीर

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वेसाही आदत आ मुंहिंजी,
जंहिं आदत जो लाभु वठी,
दम दम दुनिया वारनि मूं सां,
दोखेबाज़ी आहि कई।

पर मूं खे दुखु आहि न कोई,
दम दम दोखनि खाइण ते,
दुखु त तॾहिं ईवाजिब थिए हां,
जे जॻ वारनि जहिड़ो थी,
जॻ वारनि सां हेकर ई,
मां बि करियां हा कुझु दोखो।