भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संसार बनल बगिया हो / मोतीलाल साह 'कलाकार'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:53, 21 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोतीलाल साह 'कलाकार' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
॥हिण्डोला॥
संसार बनल बगिया हो, लागल माया हिण्डोर॥1॥
जीव चौरासी झुलै हो, बितलै कल्प करोर॥2॥
जनम-मरण के खंभा हो, मोह-ममता की डोर॥3॥
धरा-गगन बीच हिण्डोर, परलय पवन बरजोर॥4॥
सुर-नर-मुनि सब झूलै हो, दिन-रैन रहत हिलोर॥5॥
विधि हरिहर भी झूलै हो, कवन से करूँ निहोर॥6॥
कब तक झूला झूलबै हो, जिया काँपै मोर॥7॥
सत्पुरुष झुलाबै हिण्डोरा हो, विनती करौं कर जोर॥8॥
‘मोती’ गुरुपद लागी हो, अब न झूलबै बहोर॥9॥