भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उठो हे सखिया! खोलो खोलो अँखिया / रघुनन्दन 'राही'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:59, 21 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुनन्दन 'राही' |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उठो हे सखिया! खोलो खोलो अँखिया, कहाँ छै रतिया ना।
हाय राम! उगलै भोरकवा बिछावो आसनिया,
करो भजनिया ना॥
काया नगरिया में सुखमन दुअरिया, खोलो केवरिया ना।
हाय राम! पिया मिलन के शुभ छै घड़िया,
जोड़ो नजरिया ना॥
हृदय-महल में पलंग बिछाओ, सुरति सजनिया ना।
हाय राम! चकमक-चकमक मोतिया चमकै,
बाजै पैजनिया ना॥
पाँच रतनवाँ धरु अँगनवाँ, कहै सजनवाँ ना।
हाय राम! पिया महल में मिरदंग बाजै,
शुभ दरसनवाँ ना॥
शब्द के डोलिया चढ़िके सखिया, जा ससुररिया ना।
हाय राम! जन ‘रघुनन्दन’ के यही अरजिया,
सीतल छतिया ना॥