भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खुलता नेत्र तीसरा / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:06, 29 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग कौशिक कानड़ा-तीन ताल)

खुलता नेत्र तीसरा भीषण उठता विषम रौद्र-रस जाग।
 करता दहन दुष्ट दुर्दान्तोंका बरसा प्रलयंकर आग॥
 शीतल ज्योति-सुधा-धारासे हरता सब जनके संताप।
 मंगल धर्मस्थापन होता, मिटते सारे जगके पाप॥