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जय शिवशंकर औढरदानी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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दोहा
(राग माँड-ताल कहरवा)
अज अनादि अविगत अलख, अकल अतुल अविकार।
बंदौं शिव-पद-युग-कमल अमल अतीव उदार॥-१॥
आर्तिहरण सुखकरण शुभ भुक्ति-मुक्ति-दातार।
करो अनुग्रह दीन लखि अपनो विरद विचार॥-२॥
पर्यो पतित भवकूप महँ सहज नरक-आगार।
सहज सुहृद पावन-पतित, सहजहि लेहु उबार॥-३॥
पलक-पलक आशा भर्यो, रह्यो सुबाट निहार।
ढरो तुरंत स्वभाववश, नेक न करो अबार॥-४॥