भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गौरारुण शुभ वर्ण मुकुट / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:37, 29 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग काफी-ताल मूल)

गौरारुण शुभ वर्ण मुकुट सिर रत्न विराजित।
 नील वसन, गल रत्न-कुञ्सुम हारावलि राजित॥
 शूल-बाण-धनु-परशु हस्त, भुजबन्ध सुराजित।
 कटि काञ्ची, सुच्ञ्णित रणित पग नूपुर भ्राजित॥
 तेज-पुंज तन, तीन नेत्र उज्ज्वल सुषमा मय।
 हर-प्रिया हिम-गिरि-वासिनी मा गौरी ! जय जय॥