भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँझ / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:06, 30 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन सूरो |अनुवादक= |संग्रह=रूप रू...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँझक पहर उदास!
सूनोॅ रस्ता दूर नगरिया!
थुलथुल बुढ़िया हतोपरास!
खट-खट छेंड़ी; झपझप आँख,
गुदरी पुतली पट्टी-टाँक
कुबड़ोॅ डाँड़ोॅ उमरक भार
सौंसे जिनगी दूर-दमार
हिरदय के नदिया हहराय,
छन-छन आबेॅ छन-छन जाय
बितलोॅ जिनगिक हवा-बतास!
साँझक पहर उदास!

बालू-घुरदा दोना-मौनी
दीया-बाती मान-मनौनी
लाज-लजारी सेज-सजारी
सब होशियारी सपनाक रास!
डगमग डेग छेंड़िक थेग
सुखी रहै के, खूब बहै के
सौंसे जिनगी एक पियास!
साँझक पहर उदास!