भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लुकचुक बेरा / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:42, 30 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन सूरो |अनुवादक= |संग्रह=रूप रू...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लुकचुक बेरा हवा बहै छै बाबरी;
आबी रल्छै साँझ री!
चल झटपट गगरी लै पानी घाट में
रसिया होता बहियारोॅ के बाट में
खतम करी केॅ बाँकी बचलोॅ काज री।
बहते होतै घाम थकन के गाल में
तय्यो होता जल्दी-जल्दी चाल में
सुधि पर यै दुखिया के होतै राज री।
जल्दी-जल्दी चल सब काम पुराय केॅ
द्वारी पर खड़ु ऐबै पलक बिछाय केॅ
पीबी केॅ सबटा हिरदय के लाजरी।