भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहर में साँप / 49 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:20, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
साँप नेॅ
आदमी सेॅ कहलकै
तोंय विपत्ति में फँसल आदमी केॅ
देख केॅ भाग सकै छौ
मुदा हम्में दोस्ती में
ओकरा बचवै लेली
एैड़ सकै छौं/लैड़ सकै छौं
जानों भी गंवाय सकै छौं।
अनुवाद:
साँप ने
आदमी से कहा
तुम विपत्ति में फँसे आदमी को
देख कर भाग सकते हो
किन्तु मैं दोस्ती में
उसे बचाने के लिए अड़ सकता हूँ
लड़ भी सकता हूँ
जान भी गंवा सकता हूँ।