भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सलियो पिरोलियं / मीरा हिंगोराणी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:43, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीरा हिंगोराणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
”गोल गुलाबी ॼमूअ वांगुर,
रहांथोचाश्नीअ जे अंदर,
बदन मुहिंजो गोल-मटोल,
ॿुघायो केरु,
त मिलंदुब टोलु!“
(गुलाब ॼमंू)
सख्त पत्थर जहिड़ो बाहिर,
मक्खणु मलाई नर्मु अंदरि,
मिठायुनि में निराली शानु,
बु-घाइ मुहिजो नालो शाम,
डी-दुसि तोखे झझो इनामु!
(नारेलु)