भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुलिफ़ी हाउस / मुकेश तिलोकाणी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:34, 6 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश तिलोकाणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुराणियुनि
घिटियुन मां
पेर फटाए
हिति पहुतासीं।

तीखे कीअं लॻो
ख़बर सुभाणे पवंदी
सुबुह सवेल
अखि खुले अलाए न
तोखे इहे नज़ारा
केसिताईं यादि रहंदा
वरी मुलाक़ाति
थिए त
कुलिफ़ी हाउस में
ज़रूरु हलंदासी।