भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महिदूद / मुकेश तिलोकाणी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:40, 6 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश तिलोकाणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आङरि खॼे
हथु मिले
पेरु खॼे, बिही रहे
नकी हा
नकी न।
ॿि तरिफ़ी
ख़ाली स्पेस में
खड़ी थियल दीवार
का माना
का खु़शी
को अहिसासु।
बेशकु़
ॻाल्हि घेरे में
घुमे थी, रम्ज़ फेरियूं पाए थी
ऐं ॾींहुं
नज़रुं मिलाइण ताईं
महिदूद रहिजी वञे।