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सवाबु / मुकेश तिलोकाणी

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हाणि मुंहिंजे
वस में न आहे।
जो पुॻुमि सो ॾिनुमि,
ॾियारियुमि।
खुशिहाल ज़िन्दगी जीउ
आदी लोक खां
पासो वठी
साॻिये पेचिरे खां
लिकी परे बीहु।
तो ॼातो...?
छा पातो?
खुश आहीं?
कीअं?
तुंहिंजूं भावनाऊं नेकु
हा में हा
छा चवां।
हेल ताईं
मुंहिंजो चवणु, तुहिंजो मञणु
हाणि
कामयाबी तो वटि
सवाबु मूं वटि।