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संगीत का आभास / योगेंद्र कृष्णा

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स्याह पत्थरों पर

जल-प्रपात का

इस तरह टूटना

और फिर

खंड-खंड पानी का

साथ-साथ बहना

एक नदी की तरह...

एकांतवासी

पहाड़ी उस बुढ़िया की

अंधेरी आंखों में भी

सपने उकेर सकता है

पानी का इस तरह

गिर कर टूटना

और फिर बहना

एक नदी की तरह...

रफ्तार में भागते

महानागर उस लड़के की

अस्त-व्यस्त हरकतों में

व्यर्थता का सहज

अहसास उगा सकता है

खंड-खंड पानी का

साथ-साथ बहना

एक नदी की तरह...

बदहवास-सी भागती

या नदी के किनारे

ठिठकी-सी खड़ी

कस्बाती उस औरत के

रिश्ते की बुनावट में

उग आए जालों

और गलत गुंथे तारों में

संगीत का

आभास बुन सकता है

तभी तो

पहाड़ी वह बुढ़िया

अंधेरी आंखों में

सपने सहेज

नदी में एक रात

निर्विकार सो लेती है

महानागर वह लड़का

रफ्तार से इतर

पगडंडियों पर

उन्मुक्त हवाओं के

साथ हो लेता है

और

कस्बाती वह औरत

रिश्ते की बुनावट में

उलझ गए तारों का

सुराग पा लेती है