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पत्थर के निशान / योगेंद्र कृष्णा

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आतंक के शिविर में

कुछ देर और ठहर जाता

तो अच्छा था

अपने चेहरे पर भी

पत्थर के निशान देख लेता

तो अच्छा था

आतंक के अंधेरे में

जिन चेहरों को भी

काफी करीब से देखा है

अपने चेहरे से

अलग नहीं दिखा

बावजूद इसके

जिसके हाथ में पत्थर था

वह खौफजदा चेहरे से भी

ज्यादा परेशान दिखा