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पंछी बोल रहे हैं / रमेश तैलंग
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पेड न काटो, पेड़ न काटो
पंछी बोल रहे हैं।
पेड़ बिना हम कहाँ रहेंगे?
नीड़ हमारे कहाँ बसेंगे?
उड़-उड़कर जब थक जाएँगे,
शरण कहाँ फिर हम पाएँगे?
पेड़ों से ही है हरियाली।
पेड़ों से ही है खुशहाली।
शहर हुए पेड़ों से खाली।
सूरत उनकी होगी काली।
अपना सुख न सोचो प्यारे!
हम हैं सच्चे दोस्त तुमहारे।
पंछी, पेड़, जानवर, जंगल।
बचे रहे तो होगा मंगल।