भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पापा मेरी गुल्लक रख दो / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:48, 15 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पापा मेरी गुल्लक रख दो कहीं छुपाकर।
ऐसी जगह किसी को जिसका पता चले न।
जान बचे बस मेरी, भैया सता सके न।
बिना बात ही फिर मुझको धमका-धमाकर।
अपने पैसे तो उसने कर दिए खर्च सब।
नजर गड़ाए है वह मेरी गुल्लक पर अब।
हार गई हूँ मैं उसको समझा-समझाकर।
मुश्किल से दस रुपये मैंने जोड़े होंगे।
किसे पता है, शायद ये भी थोड़े होंगे,
ब्याह रचूँगी गुड़िया का जब गुड्डा लाकर।