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मील के पत्थर / योगेंद्र कृष्णा
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तुम्हारी सरहदें नहीं हैं
आकाश पहाड़ और ये सागर
तुम्हारी अनवरत यात्रा में
महज दृष्टांत हैं
अंत नहीं हैं
पड़ाव हैं
मील के पत्थर हैं
संगमील हैं जिंदगी के
तुम्हें तो तलाश है
नई सरहदों की
जहां तुम्हारे आदर्शों पर
बारूदी सुरंगों के
कड़े पहरे हैं
तुम उन्हीं रास्तों पर
आगे बढ़ते हुए
अपने पीछे
लहूलुहान
एक रास्ता छोड़ जाते हो
बारूदों पर
चलने की बनिस्बत
कितना सहज है
तुम्हारे ताजा लहू के निशान पर
पांव रखना
बढ़ना उस रास्ते पर
और
तुम्हारे ही आदर्शों में
अपने लिए पड़ाव ढूंढ़ लेना