भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुस्तकालय / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:21, 16 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पुस्तकालय में मिलीं हमको किताबें।
कुछ भरी थीं धूल में,
कुछ के कई पन्ने फटे थे।
और कुछ ऐसी थीं जिनके
हाल बिलकुल अटपटे थे।
एक के अंदर लिखा था-
‘नाम मेरा... पेज पर है।’
दूसरी में था लिखा-
‘पुस्तक निरी बकवास भर है।’
और कुछ ऐसी थीं जिनकी
शक्ल पर बारह बजे थे।
कुछ कलाकारों के रेखांकन
वहाँ उनमें सजे थे।
मूक थीं ये पुस्तकें सब
यातनाएँ सह रही थीं।
पर कहानी मनचले कुछ
पाठकों की कह रही थीं।