भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुक्कू जी ने मेला देखा / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:44, 16 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश मनु |अनुवादक= |संग्रह=बच्च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कुक्कू जी थे खूब रंग में,
कुक्कू जी ने मेला देखा!
मेले में देखी एक गुड़िया
टोप लगाए गुड्डा देखा,
ढाई मन की धोबन देखी
हा-हा हँसता बुड्ढा देखा।
बड़ी भीड़ थी, धक्कम-धक्का,
झंझट और झमेला देखा!
गरम इमरती खूब उड़ाईं
जी भर करके लड्डू खाए,
फिर दौड़े झटपट अनार के
चूरन की एक पुड़िया लाए।
घुँघरू बाँधे ठुन-ठुन करता,
जलजीरे का ठेला देखा।
मोटे हाथी पर बैठे थे
एक मोटे-ताजे लाला जी,
हँसकर बोले-आओ-आओ,
कुक्कू ने तो बस, टाला जी।
शीशमहल में नाटी-तिरछी,
शक्लों का एक रेला देखा।
एक जगह बंदूक और थे
टँगे हुए ढेरों गुब्बारे,
कुक्कू जी ने लगा निशाना
फोड़ दिए सारे के सारे।
ले इाम आए दंगल में-
किंगकौंग का चेला देखा।