भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर में सभा / ब्रजेश कृष्ण

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:05, 17 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूरे शहर में कई दिनों तक ऐलान हुआ
कि शहर में सभा होगी
राजधानी से राजा आयेंगे
वे प्रजा को खु़शियों का रास्ता दिखायेंगे

पहले गुप्तचर आये
उन्होंने सारे शहर को सूँघा
फिर सेना आई
उसने सारे शहर को
हड़काया और किया चौकस
फिर आये कारिन्दे
उन्होंने प्रजा को इकट्ठा किया
और पालथी मार कर बिठाया

सारंगी बजी
राजा आये
राजा बहुत अच्छा बोले
उन्होंने प्रजा को रास्ता दिखाया
तालियाँ बजीं
राजा राजधानी लौट गये

अब?
अब प्रजा अपने घर जाये
थैला उठाये
सब्जी लाये
राशन लाये
दवाई लाये
लड़े या मरे
या हिम्मत हो तो
राजा के बताये रास्ते पर चले

राजा बहुत व्यस्त हैं
क्या प्रजा को सुनाई नहीं देता
दूसरे शहर में
सभा का ऐलान हो रहा है।