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ठण्ड और कोहरे का... / ब्रजेश कृष्ण

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बरसों बाद ऐसी ठण्ड और कोहरा
कि कुछ भी दिखाई नहीं देता
थोड़ी ही दूर के बाद

बताता है मौसम विभाग
कि टूट रहे हैं चालीस बरस के प्रतिमान
हैरान कर देने वाली ठण्ड से
निपट रहा है मेरा घर
रजाई में बैठे हुए आसानी से

बर्तन वाली माई से
पूछा गया है कोयले का भाव
मगर वह लौट जाना चाहती है
जल्दी ही अपने घर
दुबक जाने के लिए

उसके जाने के बाद
एक उत्सव की तरह
हम सभी ने खाये खजूर
बच्चों की फरमाइश पर
बनाई गई गरम पकौड़ियाँ और कड़क-सी चाय
खिड़की से झाँक कर देखा गया
बादलों की तरह उड़ता और ठहरा हुआ कोहरा

ख़बरों में हँसे पहले कोई नरेन्द्र मोदी
फिर फूट-फूट कर रोई
एक छै बरस की लड़की
मौसम का ऐसा कठिन क़हर
और पुलिस ने उजाड़ दिया था उसका घर

लड़की का विलाप
रह-रह कर बजता है
हड्डियों में जाड़े की तरह
और कोहरा: सचमुच इतना घना
कि कुछ भी दिखाई नहीं देता
अपने ही चश्मे के बाहर।