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बच्चे और बूढ़े / ब्रजेश कृष्ण

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बच्चों को क्रिसमस पर रचना था खेल
और उन्हें तलाश थी सांताक्लाज़ की
उन्होंने पूरे शहर के बूढ़ों को देखा और परखा
कईयों के पास वैसी ही लम्बी दाढ़ियाँ थीं
सिर पर रंग-बिरंगी टोपियाँ
कंधों पर तरह-तरह केथैले
और बड़ी-बड़ी जेबों वाले कोट
बच्चे घुस गये इन बूढ़ों के भीतर
मगर वे लौटे दुखी और निराश
क्योंकि ये सारे बूढ़े सचमुच के बूढ़े थे
समय की मार से पहले हुए बूढ़े
इसीलिए चिड़चिड़े, दुखी और निराश बूढ़े

शहर से निराश बच्चे
दूर जंगलों की ओर गये
और लापता हो गये सदियों पहले के समय में

सांताक्लाज़ की तलाश जारी है
बच्चे नहीं लौटे हैं अभी तक
व्यस्त शहर को यह पता भी नहीं है
कि मोमबत्तियाँ हाथ में लिये
शहर के बाक़ी बच्चे
बूढ़े हो रहे हैं बहुत तेज़ी से
चिड़चिड़े, दुखी और निराश बूढ़े।