भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं इस शहर को क्यों प्यार... / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:50, 17 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
किसी शहर को
कोई क्यों प्यार करता है
इस बात पर बहस करने का कोई अर्थ नहीं है
बहस के लिए ना सही
मगर इस बात का अर्थ है:
कम से कम मेरे लिए तो है
क्योंकि इस समय मैं जानना चाहता हूँ
कि मैं इस शहर को क्यों प्यार करता हूँ
अचरज है मुझे कि
मैं तफ़सील में कुछ भी नहीं सोच पाता
बस मुझे इतना ही याद आता है
कि इस कठिन और बेतुके समय में
अस्सी बरस से ऊपर के
एक बुजु़र्ग कवि दोस्त भारद्वाज
इस शहर में हर जगह दिख जाते हैं
और वे रोज़ एक नई प्रभाती गाते हैं
मैं तफ़सील में नहीं जा पाता
मैं तफ़सील में जाना भी नहीं चाहता
क्योंकि इतना ही काफी है मेरे लिए इस समय
इस सवाल के जवाब में
कि मैं इस शहर को क्यों प्यार करता हूँ।