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अब तुमसे क्या मिले / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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अब
तुम से क्या मिलें?
बातें सुषुप्ति की-
याद नहीं,
जाग्रति की क्या कहें
सपनों तक
फैल गईं
दफ्तर की फाइलें।