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अरे क्या करें / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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अरे क्या करें?
लोना लगी हुई दीवारें
सेरों माटी झरें।

कोई नहीं हटाना चाहे
जगह जगह-
मकड़ी के जाले,
रोशनदान, खिड़कियाँ
सारी, बन्द द्वार-
अँधियारा पाले;
कहाँ कहाँ हम
अलख जगायें
कहाँ कहाँ अब-
दीप धरें।