भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक गाँठ और / शिवबहादुर सिंह भदौरिया
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:53, 17 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवबहादुर सिंह भदौरिया |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सरपत सी मूछों
और
मशकनुमा छाती पर
आँख गड़ गई;
उलझे हुए धागे में
एक गाँठ
और पड़ गई।
