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एक अस्वीकृति / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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ये
सब सींगें मारते हैं,
धकियाते हैं
कि
इनके साथ चलूँ
इन्हें कोई
समझाता कहीं-
कि मैं
कोई भेड़ नहीं है।