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दूर! / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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कुछ नहीं से
कुछ नहीं का-
जोड़ना भर,
पार्क में
लेटे हुए
खाली
अलग
आजाद
अपनी पहुँच भर की दूब
केवल
दूब की इन टहनियों को-
तोड़ना भर
आज मेरा काम।
मुझको बहुत कुछ आराम।
सारी गन्दगी से दूर
नकली जिन्दगी से दूर
सौ-सौ बन्दगी से दूर
लायी खूब
मेरी शाम
मुझको बहुत कुछ आराम।