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हरिद्वार की घाटी / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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एक
दिया है-पर्वतीय घाटी
हरिद्वार की,
वर्त्तिका: इन्द्रधनुष
क्या कहने
सप्तरंगी उजियार की;
आज सँझवाती किसी की
छोड़कर गुण-धाम,
आ गयी
यायावर के काम।

अर्थ टूटे नीर का तालाब

अब
तुमसे कब मिलें।
बातें सुषुप्ति की
याद नहीं
जाग्रति की क्या कहें
सपनों तक फैल गईं
दफ्तर की फाइलें।
संवेदन-आलपीन में
नत्थी हैं:
सन्नाटे की सुइयाँ
चुभोती दिशाएँ,
पत्थरों की मार से
अर्थ-टूटे नीर का
तालाब,
कोहरा पहने हुए
धुँधले सबेरे का
जवाब
रोशनी के कँवल-दल
कैसे खिलें।