भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धिनतका / श्रीप्रसाद

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 20 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पेड़े खड़े हैं जंगल में, धिनतका
पहलवान हैं दंगल में, धिनतका
फूल पेड़ पर आएँगे, धिनतका
पहलवान लड़ जाएँगे, धिनतका
दुश्मन सदा डराता है, धिनतका
मगर हार भी जाता है, धिनतका
मैं चंदा पर जाऊँगा, धिनतका
तीन माह में आऊँगा, धिनतका
आज छमाछम नाचो जी, धिनतका
अच्छी कविता बाँचो जी, धिनतका
हाथी चलता डगर-डगर, धिनतका
जाता है वह अपने घर, धिनतका।