भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब लगन लगी कीह करीए / बुल्ले शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:45, 6 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुल्ले शाह |अनुवादक= |संग्रह=बुल्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब लगन लगी कीह<ref>क्या</ref> करीए?
ना जी सकिए ते ना मरीए!

तुम सुनो हमारी बैना<ref>विनती</ref>,
मोहे रात दिने नहीं चैना,
हुण प्री<ref>प्रियतम</ref> बिन पलक न सरीए।
अब लगन लगी कीह करीए?

एह एगन बिरहे दी जारी,
कोई हमरी प्रीत निवारी,
बिन दरशन कैसे तरीए?
अब लगन लगी कीह करीए?

बुल्ले पई मुसीबत भारी,
कोई करो हमारी कारी,
एह अजिहे दुख कैसे जरीए?
अब लगन लगी कीह करीए?
ना जी सकिए ते ना मरीए।
अब लगन लगी कीह करीए?

शब्दार्थ
<references/>