भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुरली बाज उठी अन घाताँ / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:39, 6 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुल्ले शाह |अनुवादक= |संग्रह=बुल्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मुरली बाज उठी अन घाताँ,
मैनूँ भुल्ल गइआँ सभ बाताँ।
लग गए अनहद बाण न्यरे,
छुट्ट गए दुनिआँ दे कूड़ पसारे,
असीं मुख देखण दे वणजारे,
दूइआँ भुल्ल गइआँ सभ बाताँ।
मुरली बाज उठी अन घाताँ।
असाँ हूण चंचल मिरग फहाया,
ओसे मैनूँ बन्न बहाया,
हरफ दुगाना ओसे पढ़ाया,
रह जइआँ दो चार रूकाताँ<ref>रुकावटें</ref>।
मुरली बाज उठी अन घाताँ।
बुल्ला शाह मैं तद बिरलाई,
जद दी मुरली काहन बजाई,
बौरी होई ते तैं वल्ल धाई,
कहो जी कितवल्ल दसत बराताँ।
मुरली बाज उठी अन घाताँ।
शब्दार्थ
<references/>